Saturday, July 13, 2013

RUPAHLA PARDA HUA NISHPRAN..

प्राण ............. ( रुपहला पर्दा हुआ निष्प्राण )

बतौर फोटोग्राफर अपनी ज़िन्दगी की शुरुआत करने वाला ये अदाकार हिंदी सिनेमा में खलनायक की परिभाषा बदल देगा ये शायद किसी ने सोचा भी नहीं था . उनके फ़िल्मी सफ़र की शुरुआत अभिनेता के रूप में हुई थी लेकिन अभिनेता की अदाकारी से वे खुश नहीं थे शुरुआती दौर में उन्होंने राम लीला में सीता की भूमिका अदा की, लाहौर में पंजाबी फिल्मो में काम किया और फिर रुख किया मुंबई और १९४८ में " ज़िद्दी " में बतौर खलनायक अभिनय किया . वो उनके संघर्ष का दौर था उस समय के स्थापित खलनायको के बीच अपने आप को साबित करना उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं था ...लेकिन उन्होंने अपनी अभिनय क्षमता, तीखे नैन नक्श, बुलंद आवाज़ और विशेष संवाद अदायगी से सभी को अपने अभिनय का लोहा मनवाया . 

दोस्तों ... दुनिया में चंद लोग ही होते हैं जो अपने नाम को सार्थक कर पाते हैं उनमे से एक प्राण साहब भी थे ... अपने निभाए हुए हर किरदार में वे 'प्राण' फूंक देते थे जैसे जिस देश में गंगा बहती है का डाकू, ज़जीर का पठान, पुकार का मलंग चाचा या फिर हाफ टिकिट का स्मगलर ... उनकी हर भूमिका एक नए अंदाज़ और नए वेश के साथ होती थी . उन्होंने उस दौर के हर स्थापित अभिनेता के साथ काम किया और खलनायक के रूप में अपनी एक विशेष पहचान बनाई ..... फिल्मो में अभिनेता के साथ साथ उनकी अदाकारी को भी उतनी ही प्रशंसा मिली जितनी बतौर हीरो किसी अदाकार को मिलती है . हर अभिनेता और निर्देशक उन्हें अपनी फिल्म में खलनायक के रूप में लेने को तत्पर रहते थे उनके लिए विशेष भूमिकाएं गढ़ी जाती थी ... उनके चेहरे का गुरूर, आँखों का रुबाब और वज़नदार आवाज़ ही काफी होती थी दर्शकों में खौफ पैदा करने के लिए .... उनके परदे पर आते ही बच्चे अपने माँ बाप की गोद में दुबक जाया करते थे ....... तत्कालीन समय में लोगों ने अपने बच्चों का नाम प्राण रखना बंद कर दिया था .....
खलनायक के जितने रूप प्राण साहब ने अदा किये हैं शायद ही किसी और कलाकार ने अदा किये होंगे ........ अनुशासित और समय के पाबंद प्राण साहब ने हर दिल पर राज किया है ... बतौर इंसान वे बड़े दरिया दिल, नेक और यारबाज़ थे .... भूमिका और किरदार के प्रति उनका समर्पण काबिले तारीफ है . वे चाहते तो अपनी अभिनय क्षमता से बतौर अभिनेता बन सकते थे लेकिन उन्होंने खलनायकी को ही चुना और दुनिया को दिखा दिया की महानायक के साथ साथ महाखलनायक भी हो सकता है . 

बदलते समय के साथ साथ उन्होंने अपने आप को खलनायकी तक ही सिमित नहीं रखा .... उन्होंने आने वाले दौर के खलनायकों को प्रेरणा दी और मौका भी दिया और चरित्र अभिनेता के रूप में अपने आप को ढाल लिया ..... जिसमे हास्य भूमिकाएं भी शामिल थी ..... इन सभी भूमिकाओं में भी प्राण साहब ने वही जादूगरी दिखाई जो खलनायकी में थी जैसे .. कालिया, क़र्ज़, शराबी, डॉन, नसीब इत्यादि .. हर किरदार में अपने आप को ढालने का हुनर किसी अजूबे से कम नहीं था .......... उन्होंने अपनी पूरी ज़िन्दगी जिंदादिली और शान से गुजारी।।

आज रुपहले परदे का ये महान अदाकार हमारे बीच नहीं है ...... बरखुरदार कहने वाला शख्स हमें अलविदा कह गया .... लेकिन प्राण साहब को भुला पाना संभव नहीं है ऐसे महान खलनायक सदियों में ही जन्म लेते हैं ......... उनके जाने से रुपहला पर्दा निष्प्राण हो गया .....


जयदीप भागवत ..