Tuesday, October 18, 2011

SHAYAD BACHPAN FIR LAUT AAYE.....

शायद बचपन फिर लौट आए..................................................

 आज की शिक्षा प्रणाली में किताबों और बस्तों के बोझ तले बचपन कहाँ दब गया पता ही नहीं चला. दशहरे और दिवाली की २५ दिनों की छुट्टियाँ आज की पीढ़ी के लिए नाना नानी के किस्से कहानियों जैसी हो गई है और कुछ सालों बाद ढूँढने पर अवशेष भी नहीं मिलेंगे. दशहरा और दिवाली का त्यौहार हमारी सांस्कृतिक परंपरा है और दशहरे से दिवाली तक का समय एक उत्सव की तरह सम्पूर्ण हर्षौल्लाह्स के साथ मनाया जाता है चारों और रौनक ही रौनक दिखाई देती है जिसका खासतौर पर बच्चों में अत्यधिक उत्साह होता है. ग्रामीण अंचलों में भी ये छुट्टियाँ अत्यधिक महत्व रखती थी क्योंकि यह समय होता है रबी की फसल कटने का. परिवार की सभी बड़े बुज़ुर्ग और महिलाएं खेतों में फसल काटते हैं और घर के बड़े बच्चे छोटे बच्चों को संभाल लेते थे. लेकिन आज कल छुट्टियाँ मुट्ठी में रखी रेत की तरह फिसल जाती हैं और त्यौहार को छुकर ऐसे गुज़र जाती है जैसी कोई तेज़ हवा का झोंका.
पहले जब बच्चे दिवाली की छुट्टियों के बाद  स्कूल जाते थे तो कई दिन सिर्फ चर्चाओं में बीतते थे हर बच्चा उत्साह के साथ अपना अनुभव सुनाता था त्यौहार का असर धीरे धीरे कम होता था और ज़िन्दगी वापस अपनी पटरी पर आ जाती थी. लेकिन अब बच्चा मायूस सा चेहरा लेकर लौटता है और चर्चा में होता है होमवर्क, असायिन्मेंट्स और प्रोजेक्ट्स. होमवर्क का बोझ इतना अधिक होता है की बच्चा त्यौहार भूलकर होमवर्क में लग जाता है.
जब सरकार द्वारा गर्मी की छुट्टियों में कटौती कर ही दी गई है तो दिवाली की छुट्टियों को पुनः २५ दिन करना जायज़ है. शायद इसी बहाने इस पीढ़ी का बचपन फिर लौट आए और बच्चे त्योहारों का आनंद ले सके...