Sunday, January 23, 2011

MAHANGAI DAAYAN............................................................

महंगाई डायन.................................
बढती हुई महंगाई ने भले ही देश की अर्थ व्यवस्था को मजबूती प्रदान करी हो लेकिन इसकी रफ़्तार से आम जनता ही नहीं बल्कि सभी वर्ग पर प्रभाव पड़ा है.. बढती महंगाई ने आम जनता की आर्थिक स्थिति को डगमगा दिया है.. इसके बढ़ने का मुख्य कारण बढती हुई जनसँख्या,उत्पादन कम और उपभोक्ता अधिक, सरकार की नीतियाँ इत्यादि हैं.
केंद्र सरकार को चाहिए की अपनी नीतियों पर पुनःविचार करें....... और एक विशेष समिति गठित कर आयात एवं निर्यात की वस्तुओं का अवलोकन करें जिससे की यह निर्धारण हो सके कि हमारे देश की खपत के अनुसार कितना आयात करना है और कितना निर्यात किया जा सकता है.... उद्देश्य यह न हो कि अधिक कीमत मिलने कि वजह से हमारे देश में होने वाली खपत को नज़रंदाज़ कर निर्यात कर दिया जाये........... गरीबी रेखा के नीचे के वर्ग के लिए
कंट्रोल कि दुकानों पर होने वाले भ्रष्टाचार को रोककर उन्हें उचित मूल्य पर अनाज एवं रोज़मर्रा कि वस्तुएँ उपलब्ध कराई जाएँ........... सरकार को चाहिए कि उत्पादन का एक लक्ष्य निधारित करे और इसकी जानकारी हर भारतीय नागरिक तक पहुंचे......... किसानो के लिए विशेष योजनायें बनाकर अनाज के उत्पादन को बढ़ने का प्रयास किया जाये..
गैर सरकारी तरीकों पर अगर गौर करें तो देश कि बड़ी कंपनियों को चाहिए कि.... उनके द्वारा उत्पादित वस्तुओं कि गुणवत्ता सुधार कर उचित मूल्य पर बाज़ार में बेचें और सरकार से अनुरोध कर सेल्स टैक्स और एक्साईज ड्यूटी में छूट कि अपील करें.......... जिससे कि हमारी निर्भरता आयातित वस्तुओं पर कम हो सके जो कि हमे ऊँचे दामो पर आयातित करनी पड़ती हैं.... आम जनता अपनी वित्तीय प्राथमिकताओं का निर्धारण करे और फिजूलखर्ची में लगने
वाले धन को बचत में परिवर्तित कर रोज़मर्रा कि वस्तुओं के संग्रहण में उपयोग में लायें..........पेट्रोल कि कीमतों में वृद्धि ने भी आम जनता के बजट को अस्त व्यस्त कर दिया है... फिर भी वाहनों के उपयोग एवं बिक्री पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है.............. पब्लिक ट्रांसपोर्ट का उपयोग भी बचत का एक उपाय है क्योंकि आम जनता कि आमदनी उस रफ़्तार से नहीं बढ़ रही है जिस रफ़्तार से महंगाई...
कहीं ऐसा न हो यह गीत ज़िन्दगी भर हमे गाना पड़े.......... सखी सैय्याँ तो खूब ही कमात है... महंगाई डायन खाए जात है....


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JAIDEEP R.BHAGWAT

ASST.ZONAL SALES MANAGER
AUTOCOP INDIA PVT.LTD, M- 47, NEW SIYAGANJ, PATTHAR GODAM ROAD, INDORE. M.P 07314224095.

19- SUN CITY, MR- 2
MAHALAXMI NAGAR, INDORE (M.P)
09755591736, 07314094076
EMAIL.... jrbhagwat@gmail.com, jaideeprbhagwat@rediffmail.com


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Thursday, January 6, 2011

HELMET

हेलमेट की अनिवार्यता ......................................................
हेलमेट की अनिवार्यता के लिए प्रशासन द्वारा जो प्रयास किये जा रहे हैं वे प्रशंसनीय हैं ..यह हमारी सुरक्षा के लिए है और इसका  उपयोग हर दो पहिया चालक की अनमोल ज़िन्दगी के लिए अत्यधिक ज़रूरी है .. जैसे हम घर से निकलते वक्त रुमाल,पर्स और घडी रखना नहीं भूलते उसी प्रकार हेलमेट को भी अपनी ज़िन्दगी का हिस्सा बना लें..आज ज़रूर यह बोझ लग रहा है पर सड़क दुर्घटना में जान गवाने या अपाहिज होकर ज़िन्दगी भर परिवार पर बोझ बनने से ये बोझ ज्यादा बेहतर है....प्रशासन को चाहिए की कुछ समय बाद इस नियम का और सख्ती से पालन करवाएं ..अगर यह मुहीम कुछ समय चलकर ठंडी पड गयी तो प्रशासन जाने अनजाने में उन कई हेलमेट बनाने वाली कंपनियों का भला कर देगा जिनके हेलमेट बरसों से गोदाम में पड़े धूल खा रहे है...............
 

LEKHAK

मै लेखक नहीं था ...............................................
एक सुबह घर के सामने एक हादसे ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया और उसके बाद जो विचार मन में आये कागज़ पर लिखता चला गया .........इस तरह  शुरू हुआ लिखने का सिलसिला हर आने वाले विचार को कागज़ पर उतारते उतारते एक विचार ने आर्टिकल  का रूप ले लिया और प्रकाशित हुआ "नई  दुनिया " अखबार में २९.११.२०१० को  शायद मेरे जीवन की सबसे खुशनुमा सुबह थी ...धन्यवाद देता हूँ "नई दुनिया " का जिसने मुझे अवसर दिया अपने विचारों को व्यक्त करने का, कई लोगों के फ़ोन आये बधाइयों के साथ कई लोगों ने पुछा क्या यह तुमने ही लिखा है ?....भरोसा नहीं था किसी को शायद की मै भी लिख सकता हूँ .........लोगों की गलती नहीं है मुझे जिस रूप में लोग जानते हैं शायद मै ये नहीं था .............
विचार हर व्यति के मन में आते हैं पर कई लोग उसे व्यक्त कर पाते हैं कई उसे नहीं .............मेरे पास लेखन की कोई डिग्री नहीं है .............पर एक बात सभी से कहना चाहूँगा मन में आने वाले विचारों को ना रोकें उन्हें समेट ले कागजों में  क्या पता कल वो आर्टिकल की शक्ल लेकर किसी को सोचने पर मजबूर कर दे या किसी की  सोच में परिवर्तन ले आये...