कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे ........................................
हाल ही में हुए शहला मसूद हत्याकांड में गिरफ्तार मुख्य आरोपी जाहिदा ने रिश्तों को तार-तार करने वाले जो खुलासे किये हैं उसने रिश्तों की अहमियत और गरिमा पर एक सवाल उठा दिया है. अपनी मह्त्वाकान्शा और इर्ष्या की भावना ने उसके मन में इतना ज़हर घोल दिया की अपनी खास सहेली को उसने मौत के घाट उतार दिया. बिना यह सोचे समझे की इसके परिणाम क्या होंगे परिवार का क्या होगा. आज रिश्तों की परिभाषा कितनी बदल चुकी है समाज में. आखिर क्यों पनप रही है इस प्रकार की विकृतियाँ ? क्यों इन्सान इतना स्वार्थी और असंवेदनशील होता जा रहा है ? कौन ज़िम्मेदार है इसके पीछे ?
जब हम समाज में इंसानी सभ्यता की बात करते हैं तो वहां रिश्तों का एक महत्वपूर्ण स्थान है.रिश्ते समाज की ही देन हैं चाहे वो माँ - बाप, पति - पत्नी, भाई - बहन, दोस्त इत्यादि जिन्हें सामाजिक रूप से अपनाया भी जाता है और वैध भी हैं. लेकिन आज के दौर में इन सब रिश्तों के परे एक रिश्ता जो काफी तेज़ी से पनप रहा है वो है " अवैध सम्बन्ध " जिसे समाज द्वारा न पहले स्वीकृति थी न आज है. आज भी इन रिश्तों को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता. अगर हम सामाजिक इतिहास पर नज़र डालें तो ये रिश्ते सदियों से पनप रहे हैं. राजा - महाराजाओं के काल में ये रिश्ते उच्च वर्ग तक सिमित थे लेकिन समय की बदलती हुई करवट ने निम्न वर्ग को भी अपनी चपेट में लिया. प्रारंभिक दौर में सिर्फ मध्यम वर्ग ही ऐसा था जो इससे अछूता था लेकिन हावी होती पाश्चात्य संस्कृति और टेली-विज़न के माध्यम से इसने मध्यम वर्ग में भी अपने पैर फैला लिए. पहले इन संबंधों को लेकर एक सामाजिक भय था लेकिन वासना, स्वार्थ और व्यावसायिक मह्त्वाकान्शा ने भय को दरकिनार कर इस रिश्ते को बढ़ावा दिया, यह कोई पहली घटना नहीं है ऐसी कई घटनाएँ हैं जिसमे अवैध संबंधो की वज़ह से जघन्य हत्या कांड हुए हैं. एक घटना कई परिवारों को बर्बाद कर देती है जिसका ज़ख्म पीढ़ी दर पीढ़ी ताज़ा रहता है.
टेली-विज़न और फिल्मो में अवैध संबंधो को जितनी सहजता से दिखाया जाता है उतनी ही आसानी से इंसान भी उसे अपनी जीवन शैली में ढालने की कोशिश करता है. इन संबंधो का न तो कोई चेहरा होता है न ही कोई पहचान बस ये पनपते रहते हैं और एक दिन इन्सान को ऐसे मोड़ पर लाकर खड़ा कर देते हैं जहाँ न तो ज़मीर की आवाज़ सुनाई देती है न विवेक काम करता है और नतीजे ................. हम देख ही रहे हैं.
मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से अगर देखें तो आज मनुष्य को आवश्यकता है आत्म चिंतन की वासना और स्वार्थ से बाहर आने की तभी हम रिश्तों को उनका वास्तविक और वैध स्वरुप दे पाएंगे अन्यथा यही कहते और सुनते रहेंगे ...................कितने अजीब रिश्ते हैं यहाँ पे..