मै लेखक नहीं था ...............................................
एक सुबह घर के सामने एक हादसे ने मेरी अंतरात्मा को झकझोर दिया और उसके बाद जो विचार मन में आये कागज़ पर लिखता चला गया .........इस तरह शुरू हुआ लिखने का सिलसिला हर आने वाले विचार को कागज़ पर उतारते उतारते एक विचार ने आर्टिकल का रूप ले लिया और प्रकाशित हुआ "नई दुनिया " अखबार में २९.११.२०१० को शायद मेरे जीवन की सबसे खुशनुमा सुबह थी ...धन्यवाद देता हूँ "नई दुनिया " का जिसने मुझे अवसर दिया अपने विचारों को व्यक्त करने का, कई लोगों के फ़ोन आये बधाइयों के साथ कई लोगों ने पुछा क्या यह तुमने ही लिखा है ?....भरोसा नहीं था किसी को शायद की मै भी लिख सकता हूँ .........लोगों की गलती नहीं है मुझे जिस रूप में लोग जानते हैं शायद मै ये नहीं था .............
विचार हर व्यति के मन में आते हैं पर कई लोग उसे व्यक्त कर पाते हैं कई उसे नहीं .............मेरे पास लेखन की कोई डिग्री नहीं है .............पर एक बात सभी से कहना चाहूँगा मन में आने वाले विचारों को ना रोकें उन्हें समेट ले कागजों में क्या पता कल वो आर्टिकल की शक्ल लेकर किसी को सोचने पर मजबूर कर दे या किसी की सोच में परिवर्तन ले आये...
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