Thursday, December 30, 2010

EK KUTTE KI MAUT

                                             एक कुत्ते की मौत
सुबह करीब साढ़े सात बजे का समय था कालोनी में बच्चे स्कूल जा रहे थे,कुछ लोग मोर्निंग
वाक् कर रहे थे बड़ी ही खुशनुमा सुबह थी, अचानक एक कार स्पीड में आई और उस कुत्ते को
टक्कर मार कर चली गयी जो शायद उस खुशनुमा सुबह का आनंद ले रहा था. कार वाला एक
मिनट के लिए भी नहीं रुका उसके बेटे का स्कूल बस के स्टॉप पर पहुचना घायल कुत्ते से ज्यादा
ज़रूरी था. सड़क पर खून फैल चूका था कुत्ते की चीख़े पूरी कालोनी में सिक्यूरिटी गेट पर लगे हूटर
की तरह गूँज रही थी, ना कोई उसकी चीख सुनकर रुका ना ही किसी ने उसे सड़क से किनारे कर
दवा लगाने की कोशिश करी. थोड़ी देर तक वो चीखता रहा फिर कराह कर खुद ही सड़क से किनारे
की और घिसटने लग गया, उस घायल कुत्ते को शायद यह एहसास था की थोड़ी देर में ट्राफ्फिक
जाम हो जायेगा और इंसानों को तकलीफ होने लगेगी. थोड़ी देर तक उसकी आवाज़ आती रही
सड़क पार करने के बाद शायद वह ज़िन्दगी को भी पार कर चूका था. ऐसा ही कुछ आलम इंसानों
के साथ भी है रोज़ सडको पर हादसे होते हैं और कई लोग बिना किसी फर्स्ट ऐड या मदद के बगैर
मौत के मुह में चले जाते हैं. ये है हमारी आज की व्यस्त और भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी जहाँ इंसान
सड़को पर कुत्ते की मौत मर रहे हैं, अगर हर शहरी नागरिक थोडा सा समय का पाबंद हो जाये और
अपनी रफ़्तार पर नियंत्रण कर ले तो शायद इंसान और कुत्ते दोनों ही कुत्ते की मौत नहीं मरंगे.





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