Thursday, December 30, 2010

31.................DECEMBER 2010

आज का दिन बीते साल को याद करने का दिन है शाम होते होते यादें धूमिल हो जाएगी और नए साल के आगमन की ख़ुशी में पार्टिओं का दौर शुरू हो जायेगा कहीं डी.जे पार्टी तो कहीं महफिले और शुरू होंगे शराब, शबाब और कबाब के दौर इसके साथ ही सड़कों  पर शुरू होगा हुड्द्दंग का दौर कई लोग घर पहुचंगे लड़खड़ाते हुए तो कई दुर्घटनाग्रस्त होकर और कुछ शायद घर ही ना पहुँच पायें हो सकता है की नया साल उन्हें इस दुनिया से ही दूर ले जायेगा ...........................................
करोड़ों रूपए की शराब आज बहेगी अच्छा तरीका ढून्ढ रखा है हमने न्यू इयर को वेलकम करने का लेकिन सोचना यह है की क्या यह तरीका ज़रूरी है ? बिना शराब के भी नए साल की खुशियी को मनाया जा सकता है कुछ सकारात्मक संकल्प लेकर क्योंकि सोचना हमे है की १ जनवरी २०११ का अख़बार दुर्घटना, फसाद या मौत की ख़बरों से भरा हो या फिर खुशियों की ख़बरों से.

P.CHIDAMBARAM

माननीय श्री पी.चिदंबरम जी की टिपण्णी दिल्ली में हो रहे बलात्कार और अपराध के विरुद्ध एक विशेष वर्ग की और थी जो रोज़ी रोटी की तलाश में दिल्ली आ रहे हैं, लेकिन गौरतलब यह है की अपराध का कोई वर्ग नहीं होता है यह कहीं भी कभी भी हो सकता है इसके लिए किसी वर्ग विशेष पर उंगली उठाना उसके आत्मा सम्मान को ठेस पहुचाने  जैसा है.हम एक प्रजातान्त्रिक देश के नागरिक हैं जहाँ सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं  कोई भी कही भी जाकर रोज़गार तलाश कर सकता है और अपना जीवन यापन कर सकता है. दिल्ली में हो रहे बलात्कार के लिए उच्च वर्ग एवं बिगडैल युवा वर्ग भी ज़िम्मेदार है जो राह चलते ऐसी घटनाओ को अंजाम देते हैं.
जिस वर्ग की और श्री चिदम्बरम ने इशारा किया है वह वर्ग अपराध के उद्देश्य से शहर में नहीं आता वे मजदूरी,हम्माली,साफसफाई जैसे काम की तलाश में आते हैं और यह भी सत्य है की अगर यह वर्ग ना रहे तो ये सारे काम करेगा कौन क्या आपने कभी उच्च वर्ग के व्यक्ति को गटर साफ़ करते देखा है ? इस वर्ग की आवश्यकता हमारे समाज में पहले भी थी और भविष्य में भी रहेगी.हमारा समाज भी इकोसिस्टम के पिरामिड की तरह है.
देश में जिस तेजी से जनसँख्या बढ़ रही है उतनी ही तेजी से गरीबी और बेरोज़गारी पैर पसार रही है लेकिन शिक्षा और जागरूकता की गति आज भी धीमी है. राज नेताओं को ऐसी टिपण्णी करने से पहले इस वर्ग को जागरूक एवं शिक्षित करने की पहल करनी चाहिए उन्हें रोज़गार के अवसर प्रदान करने चाहिए यह वर्ग भी हमारे समाज का हिस्सा है किसी पडोसी देश से घुसे हुए घुस्पेठिये नहीं हैं. श्री चिदम्बरम देश के गृह मंत्री होने के साथ साथ एक सुशिक्षित एवं बुद्धिजीवी वर्ग के व्यक्ति भी हैं राजनैतिक दबाव में ज़रूर उन्होंने अपना बयान वापस लेकर माफ़ी का मरहम लगा दिया हो पर जुबान से निकले हुए शब्द और कमान से निकला हुआ तीर अपनी मार तो छोड़ ही जाता है. ऐसी टिप्पणिया देश एवं समाज के लिए एक प्रश्नवाचक चिन्ह है.


--
JAIDEEP R.BHAGWAT

PANCHAM (RAHUL DEV BURMAN)

                                                            पंचम
पंचम आज इस दुनिया में नहीं हैं पर उनका नाम एक सोच एक विचारधारा बन चूका है, पंचम कि धुनें संगीत के आकाश में अनंत काल तक गूंजती रहेगी. " छोटे नवाब " से लेकर " १९४२ ए लव स्टोरी " तक का पंचम का संगीत सफ़र भुलाया नहीं जा सकता. ऐसा फनकार शायद ही इस धरती  पर दोबारा जन्म ले. ७० के दशक में पंचम ने संगीत के छेत्र में जो अविष्कार किये वो अपने आप में एक कारनामा है जैसे खोखले बांस, बोतल, कांच के गिलास, झाड़ू और गले में पानी भरकर धुन निकालना किसी अजूबे से कम नहीं था. पाश्चात्य वाद्यों के साथ लोक  संगीत का समावेश उनकी शैली में शामिल था, ७० के दशक के युवा वर्ग में पंचम के संगीत ने नया जोश और जूनून भर दिया था. संगीतकार होने के साथ साथ वे एक महान गायक भी थे उनकी अनोखी आवाज़ में गए गीत आज भी लोगों कि जुबान पर हैं.
पंचम के सबसे करीबी दोस्त गुलज़ार साहब के कहे शब्दों से  उनके रिश्ते की गहराई का अंदाजा लगाया जा सकता है, उन्होंने कहा था पंचम जब भी तुम कोई अच्छी धुन बनाते थे तो मुझे कहते थे
NOW THE BALL IS IN YOUR COURT. ये कौन सी गेंद तुम मेरे कोर्ट में डाल कर चले गए ज़िन्दगी का यह खेल अकेले नहीं खेल सकता हमारी तो एक टीम थी या तो आ जाओ या बुला लो. गुलज़ार साहब के शब्दों में पंचम के गुज़र जाने का दुःख साफ़ दिखाई देता है.
पंचम की अंतिम यात्रा के दौरान हुए एक साक्षात्कार में आशा जी ने कहा था मेरे लिए मेरा पति चला गया मेरा दोस्त चला गया दुनिया एक दिन सबकुछ भूल जाएगी पर मेरे लिए भूल पाना संभव नहीं है.
पंचम का गुज़र जाना वाकई संगीत की दुनिया पर एक बहुत बड़ा आघात था, ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो संगीत का एक दौर ख़त्म हो गया पर आज भी पंचम का संगीत उसी उत्साह के साथ सुना जाता है और आज का युवा वर्ग भी उसे पसंद करता है. पंचम दा आशा जी से कहते थे मै इस दुनिया को आने वाले बीस साल बाद का संगीत देकर जाऊंगा, और वाकई वो अपने चाहने वालों को अपना संगीत देकर इस दुनिया से चले गए. उनके जाने का दुःख उनके करीबी और सभी चाहने वालों को है.
मै उनके सभी चाहने वालों से कहना चाहता हूँ ये ना सोचना सिर्फ रोती हैं तुम्हारी आँखे, और भी रोती हैं आँखे मगर चुपके चुपके.
JAIDEEP R.BHAGWAT

BHIKARI

                                                भिखारी की पैरोडी
बात करीब दस या बारह साल पुरानी होगी उन दिनों यशराज बेनर की फिल्म मोहब्बतें रिलीज़ हुई थी और उस फिल्म का एक गाना बड़ा सुपर हिट हुआ था " दुनिया में किंतनी हैं नफरतें फिर भी दिलों में है मोहब्बतें ". मै किसी काम से टेलीग्राफ ऑफिस गया था सम्बंधित व्यक्ति सीट पर ना होने की वजह से मै कुछ देर इंतजार करने बाहर आकर खड़ा हो गया पास मै एक छोटा सा गलियारा था जहाँ एक अधेड़ भिखारन अपने दूध मुहे बच्चे को सुला रही थी उसका एक और साल भर का बच्चा रो रहा था और करीब पाँच साल का एक और बच्चा उस रोते हुए बच्चे को गाना गा कर चुप कराने  और बहलाने की कोशिश कर रहा था, गाना कुछ इस तरह था " दुनिया मै कितने हैं दहीबड़े फिर भी दिलों मै है आलूबड़े मर भी जाये कचोरी वाला मर भी जाये समोसे वाला जिंदा रहती है फिर भी उनकी होटलें". मै अपनी हंसी को रोक ना सका क्योंकि मेरे और मेरे अलावा आस पास खड़े लोगो के लिए वह एक हास्यात्मक पैरोडी से ज्यादा कुछ भी नहीं था पर अगर उस बच्चे की भावनाओं पर गौर करें तो शायद वो एक स्वाद था जो उसने कभी  चखा नहीं था  या उन कचोरी समोसे बनाने वाले होटल वालों के प्रति उसकी खीज थी जिन्होंने उसके मांगने पर भिखारी होने की वजह से उसे भगा दिया होगा.

--
JAIDEEP R.BHAGWAT

AAM HOTA JAAM

                                                                 आम होता जाम
हमारे शहर मै ट्राफिक जाम अब आम हो चूका है, इसका कारण बदहाल और बेतरतीब तरीके से खुदी सड़कें, बी आर टी  एस के काम की धीमी रफ़्तार तो है ही साथ ही हमारे ट्राफिक डिपार्टमेंट का रुख भी थोडा ठंडा है, यह जाम अब हमारी रोज़मर्रा की ज़िन्दगी का हिस्सा बन चूका है. प्रशासन तो अपना काम अपनी रफ़्तार से कर ही रहा है इसके लिए प्रशासन को पूरी तरह से दोष देना मुनासिब नहीं होगा क्यों की इसके लिए काफी हद तक जनता भी ज़िम्मेदार है.
आयिए नज़र डालते हैं हमारे शहर के ट्राफिक पर, इंदौर से महू और देवास जाने वाली नीली बसों का आलम और रफ़्तार देख कर तो लगता है जैसे होलकर महाराजा शहर की सड़कें उन्हें जागीर मै दे कर गए हों कि जाओ अब सड़कों पर सिर्फ तुम्हारा ही राज होगा. नगर सेवा बस जनता की इतनी सेवा करतीं हैं की जहाँ हाथ दीजिये वहीँ रुक जाएगी बी आर टी सी बसें सड़कों पर ऐसे चलती हैं जैसे हाथी चले बाज़ार कुत्ते भोंके हज़ार, टेक्सी और ऑटो वालों का आलम ऐसा है जैसे किसी प्रतिस्पर्धा मै दौड़ रहे हों, यह तो बात हुई साहब पब्लिक ट्रांसपोर्ट की आयिए अब देखतें हैं आम जनता का क्या आलम है.
साइकिल सवार अपनी धुन में चलते हैं मोटर साइकिल सवार युवा जूनून में चलते हैं वाहन चलाते समय मोबाइल पर बात करना जुर्म है पर यह आम बात है अगर किसी वाहन चालक को चलते वाहन पर बात करते समय आपने टोक दिया तो वह गालीओं का  शब्द कोष आप पर खाली कर देगा चार पहिया वाहन चालक को लो बीम पर चलना तो आता ही नहीं शहर मै भी हाई बीम पर लाइट जलाकर चलते हैं जैसे हाई वे पर चल रहे हों उन्हें इस बात का एहसास ही नहीं होता की सामने वाले वाहन चालक को कितनी परेशानी हो रही है. लेन सिस्टम को समझना और सही दिशा से ओवेरटेक करना शायद किसी ने सिखाया ही नहीं या हमने सीखने की कोशिश भी नहीं करी. बारात और जुलूस प्रजा तंत्र का फायदा उठाते हुए देखे जा सकते हैं  ऐसी स्थिति में अगर जाम लग जाये तो समझदारी से लेन को फालो करने की बजाए लोग बीच में घुस कर और जाम को बढ़ा देते हैं और घंटो तक ट्राफिक बाधित हो जाता है लोगों की ट्रेन, फ्लाईट और बसें छूट जाती हैं कई लोग अस्पताल में पहुचने से पहले ही अम्बुलेंस में दम तोड़ देते हैं कोई एक्स्ज़ाम में समय पर नहीं पहुच पता तो कोई ऑफिस में लेट हो जाता है कहने का मतलब यह है की सभी को परेशानी होती है. और हम  कोसना चालू करतें हैं प्रशासन को.
सवाल यह है की क्या इसके लिए पुर्णतः प्रशासन ज़िम्मेदार है या जनता भी. अगर हर नागरिक थोड़ी समझदारी से काम ले तो प्रशासन भी अपना काम आसानी से कर पायेगा. प्रशासन से अनुरोध है कि थोड़ी सख्ती वे भी बरतें.
सोचना हमे है कि इस रोजाना हो रहे जाम को नाकाम करने कि पहल करनी है या फिर आम होते जाम का लुत्फ़ उठाना है.

--
JAIDEEP R.BHAGWAT

EK KUTTE KI MAUT

                                             एक कुत्ते की मौत
सुबह करीब साढ़े सात बजे का समय था कालोनी में बच्चे स्कूल जा रहे थे,कुछ लोग मोर्निंग
वाक् कर रहे थे बड़ी ही खुशनुमा सुबह थी, अचानक एक कार स्पीड में आई और उस कुत्ते को
टक्कर मार कर चली गयी जो शायद उस खुशनुमा सुबह का आनंद ले रहा था. कार वाला एक
मिनट के लिए भी नहीं रुका उसके बेटे का स्कूल बस के स्टॉप पर पहुचना घायल कुत्ते से ज्यादा
ज़रूरी था. सड़क पर खून फैल चूका था कुत्ते की चीख़े पूरी कालोनी में सिक्यूरिटी गेट पर लगे हूटर
की तरह गूँज रही थी, ना कोई उसकी चीख सुनकर रुका ना ही किसी ने उसे सड़क से किनारे कर
दवा लगाने की कोशिश करी. थोड़ी देर तक वो चीखता रहा फिर कराह कर खुद ही सड़क से किनारे
की और घिसटने लग गया, उस घायल कुत्ते को शायद यह एहसास था की थोड़ी देर में ट्राफ्फिक
जाम हो जायेगा और इंसानों को तकलीफ होने लगेगी. थोड़ी देर तक उसकी आवाज़ आती रही
सड़क पार करने के बाद शायद वह ज़िन्दगी को भी पार कर चूका था. ऐसा ही कुछ आलम इंसानों
के साथ भी है रोज़ सडको पर हादसे होते हैं और कई लोग बिना किसी फर्स्ट ऐड या मदद के बगैर
मौत के मुह में चले जाते हैं. ये है हमारी आज की व्यस्त और भाग दौड़ भरी ज़िन्दगी जहाँ इंसान
सड़को पर कुत्ते की मौत मर रहे हैं, अगर हर शहरी नागरिक थोडा सा समय का पाबंद हो जाये और
अपनी रफ़्तार पर नियंत्रण कर ले तो शायद इंसान और कुत्ते दोनों ही कुत्ते की मौत नहीं मरंगे.