ज़रा सोचिये ...................................................................................
JAIDEEP R.BHAGWAT
ASST.ZONAL SALES MANAGER
AUTOCOP INDIA PVT.LTD, M- 47, NEW SIYAGANJ, PATTHAR GODAM ROAD, INDORE. M.P 07314224095.
19- SUN CITY, MR- 2
MAHALAXMI NAGAR, INDORE (M.P)
09755591736, 07314094076
EMAIL.... jrbhagwat@gmail.com, jaideeprbhagwat@rediffmail.com
२६ जनवरी हमारे देश में पिछले ६० वर्षों से गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता आ रहा है .. आज के दिन हमारे देश का संविधान बना था ..
लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे यह सिर्फ एक "नेशनल होलीडे" बनकर रह गया है . आज तक न तो इसका रूप बदला है न ही किसी ने बदलने का प्रयास किया..दिल्ली के लाल किले में झंडा फहराना, परेड, राष्ट्रपति का भाषण, झांकियां, शहीदों और वीरों का सम्मान ये औपचारिकतायें अत्यधिक् ज़रूरी हैं इनका आदर..... करना हर देशवासी का कर्त्तव्य है.लेकिन इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों एवं शहरों में जो कार्यक्रम....होते हैं अगर हम उन पर नज़र डालें तो चिराग तले अँधेरा ही नज़र आता है..
सरकारी संस्थाओं में झंडा वंदन की औपचारिकता के बाद छोटा मोटा भाषण और लोग अपने घर चले जाते हैं यही आलम निजी संस्थानों का भी होता है.. शिक्षण संस्थानों में औपचारिकताओं के बाद किसी नेता या मंत्री का भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और उसके बाद बच्चे लड्डू लेकर घर लौट आते हैं.......राजनैतिक दल जगह- जगह लाउड स्पीकर्स लगाकर देशभक्ति के गीत बजाते हैं..... सारी देश भक्ति आज ही के दिन दिखाई देती है... ये देश भक्ति होती है या शक्ति प्रदर्शन समझ पाना मुश्किल है.. कुछ नेता- मंत्री महापुरुषों के पुतलों पर हार फूल चढ़ाकर सम्मान व्यक्त...... करतें हैं या सम्मानित महसूस करते हैं..
अब अगर आम जनता की बात करें तो उनके लिए यह एक छुट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं है .. ऐसे में कभी २६ जनवरी शनिवार या सोमवार को आ जाये तो सोने पे सुहागा ........ आज की पीढ़ी की भाषा में कहें तो वीकेंड अच्छा मनेगा.... पिकनिक स्थलों पर पैर रखने की भी जगह नहीं होती............ इस दिन कुछ तथा कथित लोगों का गला सूखता ही नहीं ..... बल्कि ड्राय डे की हड्डी भी गले में अटकी पड़ी रहती है...... कुल मिलाकर गणतंत्र दिवस का एहसास कम और छुट्टी का आलस ज्यादा होता है ........लोग अपने बच्चों के लिए सड़कों पर बिकने वाले झंडे खरीदते हैं...जो दुसरे दिन सड़कों पर इधर उधर उड़ते नज़र आते हैं.. इतने झंडे तो इमारतों और कार्यालयों में नहीं फहराए जाते जितने की दुसरे दिन सड़कों पर बेशर्मी से रौंदे जाते हैं इससे बड़ा तिरंगे का अपमान और क्या होगा....
हम कब तक इसी तरह गणतंत्र दिवस मनाते रहेंगे ........... जिन शहीदों और महापुरुषों की कुर्बानियों से हम इस आज़ाद वतन में सांस ले रहे हैं क्या यही तरीका है उन्हें याद करने का..... क्या टेलिविज़न चैनलों पर एक दिन देश भक्ति की फिल्म देख लेने से हम देश भक्त हो हो जाते हैं.... क्या एक मरणोपरांत मैडल द्वारा सम्मान ही उनकी शहादत का पुरस्कार है......... भगत सिंग, चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और उनके जैसे कई शहीदों के नाम आज गुमनामी के अंधेरो में गुम होते जा रहे हैं........... क्यों २६.११ में शहीद हुए एक जवान के पिता ने मुख्यमंत्री को अपशब्द कहकर घर से निकाल दिया..................... क्यों आज का अधिकांश युवा वर्ग डिफेन्स सर्विसेस में नहीं जाना चाहता..................... क्यों हम भूलते जा रहे हैं उन लोगों के योगदान को जो हमारे देश के आधारस्तंभ हैं........ यह एक गहन चिंतन का विषय है........................................................................................क्यों न हम इस २६ जनवरी से कुछ ऐसा करें...... शहीदों और उनके परिवार के लिए की उनके परिवार भी हम देशवासियों पर गर्व करें और .... अमर शहीदों की आत्माएं भी गर्व से कहें .................
कर चले हम फ़िदा जानोतन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..................... ज़रा सोचिये ............
लेकिन अब ऐसा लगता है जैसे यह सिर्फ एक "नेशनल होलीडे" बनकर रह गया है . आज तक न तो इसका रूप बदला है न ही किसी ने बदलने का प्रयास किया..दिल्ली के लाल किले में झंडा फहराना, परेड, राष्ट्रपति का भाषण, झांकियां, शहीदों और वीरों का सम्मान ये औपचारिकतायें अत्यधिक् ज़रूरी हैं इनका आदर..... करना हर देशवासी का कर्त्तव्य है.लेकिन इसके अलावा देश के विभिन्न राज्यों एवं शहरों में जो कार्यक्रम....होते हैं अगर हम उन पर नज़र डालें तो चिराग तले अँधेरा ही नज़र आता है..
सरकारी संस्थाओं में झंडा वंदन की औपचारिकता के बाद छोटा मोटा भाषण और लोग अपने घर चले जाते हैं यही आलम निजी संस्थानों का भी होता है.. शिक्षण संस्थानों में औपचारिकताओं के बाद किसी नेता या मंत्री का भाषण, सांस्कृतिक कार्यक्रम और उसके बाद बच्चे लड्डू लेकर घर लौट आते हैं.......राजनैतिक दल जगह- जगह लाउड स्पीकर्स लगाकर देशभक्ति के गीत बजाते हैं..... सारी देश भक्ति आज ही के दिन दिखाई देती है... ये देश भक्ति होती है या शक्ति प्रदर्शन समझ पाना मुश्किल है.. कुछ नेता- मंत्री महापुरुषों के पुतलों पर हार फूल चढ़ाकर सम्मान व्यक्त...... करतें हैं या सम्मानित महसूस करते हैं..
अब अगर आम जनता की बात करें तो उनके लिए यह एक छुट्टी से ज्यादा कुछ भी नहीं है .. ऐसे में कभी २६ जनवरी शनिवार या सोमवार को आ जाये तो सोने पे सुहागा ........ आज की पीढ़ी की भाषा में कहें तो वीकेंड अच्छा मनेगा.... पिकनिक स्थलों पर पैर रखने की भी जगह नहीं होती............ इस दिन कुछ तथा कथित लोगों का गला सूखता ही नहीं ..... बल्कि ड्राय डे की हड्डी भी गले में अटकी पड़ी रहती है...... कुल मिलाकर गणतंत्र दिवस का एहसास कम और छुट्टी का आलस ज्यादा होता है ........लोग अपने बच्चों के लिए सड़कों पर बिकने वाले झंडे खरीदते हैं...जो दुसरे दिन सड़कों पर इधर उधर उड़ते नज़र आते हैं.. इतने झंडे तो इमारतों और कार्यालयों में नहीं फहराए जाते जितने की दुसरे दिन सड़कों पर बेशर्मी से रौंदे जाते हैं इससे बड़ा तिरंगे का अपमान और क्या होगा....
हम कब तक इसी तरह गणतंत्र दिवस मनाते रहेंगे ........... जिन शहीदों और महापुरुषों की कुर्बानियों से हम इस आज़ाद वतन में सांस ले रहे हैं क्या यही तरीका है उन्हें याद करने का..... क्या टेलिविज़न चैनलों पर एक दिन देश भक्ति की फिल्म देख लेने से हम देश भक्त हो हो जाते हैं.... क्या एक मरणोपरांत मैडल द्वारा सम्मान ही उनकी शहादत का पुरस्कार है......... भगत सिंग, चन्द्रशेखर आज़ाद, सुखदेव, राजगुरु और उनके जैसे कई शहीदों के नाम आज गुमनामी के अंधेरो में गुम होते जा रहे हैं........... क्यों २६.११ में शहीद हुए एक जवान के पिता ने मुख्यमंत्री को अपशब्द कहकर घर से निकाल दिया..................... क्यों आज का अधिकांश युवा वर्ग डिफेन्स सर्विसेस में नहीं जाना चाहता..................... क्यों हम भूलते जा रहे हैं उन लोगों के योगदान को जो हमारे देश के आधारस्तंभ हैं........ यह एक गहन चिंतन का विषय है........................................................................................क्यों न हम इस २६ जनवरी से कुछ ऐसा करें...... शहीदों और उनके परिवार के लिए की उनके परिवार भी हम देशवासियों पर गर्व करें और .... अमर शहीदों की आत्माएं भी गर्व से कहें .................
कर चले हम फ़िदा जानोतन साथियों अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों..................... ज़रा सोचिये ............
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