Thursday, February 3, 2011

VALENTINE DAY.......................

प्यार को प्यार ही रहने दो ............................................................
१४ फरवरी .....विश्व प्रेमी प्रेमिका  दिवस के रूप में मनाया जाता है ........ वैसे तो इस ढाई अक्षर के शब्द के कई रूप हैं पर आज के दिन पता नहीं इस शब्द में कौन से पंख लग जाते हैं ...........जो टूटे हुए छत्ते से मधु मक्खी की तरह उड़ने लगता है ........युवा वर्ग में एक विशेष उत्साह दिखाई देता है.......गिफ्ट शोप्स,फ्लावरशोप्स  और ग्रीटिंग कार्ड शोप्स को दुल्हन की तरह सजाया जाता है........शहर की होटलों में विशेष पार्टियाँ आयोजित की जाती हैं....ऐसा लगता है जैसे की सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्यार के इज़हार की तारीख मुक़र्रर की गई हो अगर आज इज़हार ना किया तो फिर अगली १४ तारीख दे दी जाए.
शिक्षण संस्थाओं में उत्सव का माहोल होता है ..........सड़कों पर युवाओं का उत्साह और उमंग देखने लायक नज़ारा होता है ..................ऐसा लगता है जैसे लैला - मजनू , हीर - राँझा, शिरी - फरहाद, रोमिओ  - जुलिअट सभी जन्नत से उतर कर सड़कों पर आ गए हों .................. और सिलसिला शुरू होता है प्यार के इज़हार का गुलाब के फूल, ग्रीटिंग कार्ड्स, गिफ्ट्स ................... इत्यादि के आदान प्रदान से  जिसका प्यार कबूल हो जाता है वह अपने आप को धरती का सबसे खुश नसीब इंसान समझने लगता  है और जिनके दिल टूटते हैं वो एक दो जगह और कोशिश कर के फिर इंतज़ार करते हैं...... अगली १४ फरवरी का इस ख्याल को ज़हन में रखते हुए की ." वो सुबह कभी तो आएगी ".......................
शाम होते होते जिनके दिल मिल जाते हैं वे होटल्स, रेस्टोरेंट्स,गार्डन्स और डी.जे पार्टियों में अपनी शाम बिता लेते हैं...... और टूटे हुए दिल अपना गम गलत कर लेते हैं ..
ऐसा नहीं है की आज का दिन शांतिपूर्ण तरीके से बीत जाता है कई राजनैतिक दल जो इसका विरोध करते हैं वे होटलों, दुकानों में तोड़ फोड़ गार्ड़न्स में युगल जोड़ों के साथ मार पीट और सड़कों पर हुडदंग जैसी वारदातों को अंजाम देते हैं........ ..और ऐवें ही शहर का माहोल बिगड़ जाता है ...उनके अनुसार यह हमारी संस्कृति का अपमान है ...उनका विचार सही है पर तरीका गलत है ........दहशत फैलाना किसी समस्या का समाधान नहीं है ..और ना ही किसी संस्कृति का हिस्सा .......
.... सवाल यह नहीं है की वेलेंटाइन डे मनाना गलत है सवाल यह है की क्या जो तरीका हमने अपना रखा है  वह किस हद तक सही है ..
प्यार सिर्फ एक शब्द नहीं है ये एहसास है रिश्तों का इसका इस तरीके से मज़ाक बना कर सड़कों पर इज़हार करना  इस शब्द और रिश्ते की गरिमा को ठेस पहुँचाने जैसा है.... इसे सौम्यता और शालीनता के साथ भी मनाया जा सकता है और कभी भी इज़हार किया जा सकता है प्यार किसी तारीख का मोहताज नहीं है.......... और भी दिवस हम मनाते हैं पाश्चात्य संस्कृति द्वारा दिए हुए जैसे मदर्स डे , फादर्स डे उस दिन युवाओं का उत्साह कहाँ चला जाता है माता पिता के प्रति आस्था और श्रद्धा व्यक्त  करने का ...................... इतना उत्साह परंपरागत त्योहारों मै क्यों  नहीं दिखाई देता ..  सोचना हमे है की प्यार को प्यार ही रहने देना है या उसका तमाशा बनाना है....

J
AIDEEP R.BHAGWAT


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MAHALAXMI NAGAR, INDORE (M.P)
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